इस नयी मंजिल की राह पर रोज नए चेहरे है, चेहरे जो कल से मेरी पेहेचान के मालिक है.
मंजिल का पता शायद ही लगा है, शायद अभी शुरुवात भी नहीं हुई है, या जो सोचा था अरसों पेहेले, हात में आकर गुफ्तगू वो कबका सुना चूका है! ये लगती कोई नई मंजिल की खोज है, साथी तो सब वही है, कुछ नये है पर अपनोसे अपने है. शायद अपने ही ये नये साथी है. कारवां सा है शायद कुछ. इस नयी मंजिल की राह पर रोज नए चेहरे है, चेहरे जो कल से मेरी पेहेचान के मालिक है. वो पेहचानते हैं मेरी राह को, वो भी शायद चले है यहाँ। कल का चेहरा जो आज़ गूंजा है मेरी शख्सियत में, नयी राह सुजाता है, केहता हैं ये भी तेरी मंजिल को जाता हैं, नये राह का मजा लेके तो देख! राह से ज्यादा मुज़े साथीदारों की हैं, बस हम सब शख़्सीयतसी हैं एकदूसरे की. किसी राह पे मोड़ लेना किसीकी मंजिल है, और किसीकी शुरू होती हैं मंजिल किस मोड़ पे. यहाँ वो पुरानी ज़िन्दगी है, दोस्त हैं वहां, हर एक राह में फ़रिश्ते हैं येह, फिर भी रिश्ते हैं. अक्सर कहेंगे मंजिल क्या हैं तेरी? हमसे भी तो बता. तुज़े क्या पता पगले शायद तेरी येह राहे खूबसूरत थी तेरी मंजिलो से. कुछ ये भी सांसे याद आयी मंजिल पे तोह तू ज़िंदा था, वरना समशान भी तो मुर्दो की 'मंजिल' होती हैं.